रविवार, 31 जुलाई 2016

ग़लती...

तुमसे  कोई शिकायत हो  भी  तो आख़िर क्यों,
तुम तक  दिल लगाने के लिए  हम ही आये थे।
मशहूर  तो  तुम  थे  ही  दिल तोड़ने  के  लिए,
ग़लती हमारी थी ख़्वाब सजाने हम ही आये थे।
~नवीन

शनिवार, 30 जुलाई 2016

एक वादा...

आप अपना सुरूर  हमसे  ज़रा दूर  रखिये,
अब हम  उसके लिए  नाक़ाबिल हो गए हैं।
मुमकिन हो तो मन में नफ़रत ज़रूर रखिये,
अब हम  एक गुनहगार  क़ातिल हो गए हैं।

देखना हो  कि  क़त्ल किसका हुआ मुझसे,
ख़ुद से पल भर के लिए रूठकर देख लेना।
ग़र न आये  यकीं  या  महसूस  न हो  ऐसे,
एक दफ़ा  मोहब्बत  में  टूटकर  देख लेना।

आपके लिए तो ये नयी-नयी सी बात होगी,
कोई शाम थी कि  मैं भी ऐसे ही हैरान था।
कभी किसी रोज़ मुझ पर भी बरसात होगी,
ऐसे ही उलझे  सवालों से  परेशान भी था।

इस इंतज़ार की हदें भी मैंने ही तय की थी,
ज़रूरत थी तो बस ख़ुद को आजमाने की।
कुछ लम्हों में  ही  हदें भी  वज़ूद खो बैठीं,
हम ख़ुद ही ख़ता कर बैठे दिल लगाने की।

किसी को मैं भी ऐसी तड़प का तोहफ़ा दूँ,
माफ़ करना, नहीं ऐसा कोई इरादा था मेरा।
दिल में  उसके नाम का दीया जलाये रखूँ,
उस ख़ास से  बस इतना सा वादा था मेरा।

~नवीन

शुक्रवार, 29 जुलाई 2016

मोहब्बत : एक इबादत


यूँ ही नहीं बढ़ जाती धड़कनें किसी के ख़याल भर से,
एक मुद्दत तक  उसे  ख़ुदा की तरह  पूजना पड़ता है।
~नवीन

मंगलवार, 26 जुलाई 2016

साक़ी...

ऐ साक़ी, अब पिला भी दे मुझे,
अब इतना  भी बेताब न कर।
बड़ी मुश्किल से मिला है वक़्त,
इसे बेगारी में यूँ बर्बाद न कर।

कुछ बेहोशी सी छायी है सर पे,
एक ख़ुराक में इसे  दूर कर दे।
कुछ  है जो क़ैद किये है मुझे,
उस दीवार को अब चूर कर दे।

थोड़ा लड़खड़ाऊँगा  ज़रूर मैं,
कुछ देर में संभल भी जाऊँगा।
नशे में ही सही दो पल के लिए,
वो पुराने गीत फ़िर से गाऊँगा।

सारे ख़्वाबों का  बिख़र जाना,
मुझे  अभी तोड़ नहीं पाया है।
मग़र गुस्ताख़ दिल भी है मेरा,
जो ख़ुद को जोड़ नहीं पाया है।

हर शाम ख़ुद से बेख़बर होकर,
तेरे मयख़ाने में  चला आता हूँ।
सच कहूँ तो  दो घूँट के बाद,
चाँद से भी रूबरू हो जाता हूँ।