मंगलवार, 30 अगस्त 2016

वही चिराग़ हो तुम...

अँधेरे के छंटते ही  उस नन्हे चिराग़ को भुला दिया जाता है,
कुछ लोगों ने तुम्हें भुला दिया तो इसमें कोई नयी बात नहीं।
~नवीन

शुक्रवार, 12 अगस्त 2016

आज  उससे  कुछ कहते-कहते  कई बार रुक गया मैं,
उसकी ही लिखी कहानी उसी को सुनाता भी तो कैसे।

बुधवार, 3 अगस्त 2016


आज भी तू मेरी साँसों में बसती है,
और तुझ बिन मेरा वज़ूद भी कब था?
मोहब्बत तो अब यादों से ही ज़िन्दा है,
वरना मेरे इश्क का कोई सबूत कब था?
दिल का दर्द ही सुनना है तो सुन लो,
अक्सर इन आँखों में आती है ये नमी।
ज़िन्दगी का सफ़र भी कट ही जाएगा,
रह भी जायेगी तो हमसफ़र की कमी।
दुनिया तो आज भी ग़लतफहमी में है,
कि मैंने तुझे पाने की दुआएं न मांगी।
क्या मेरे ख़्वाब कभी तुझसे अलग थे,
या फ़िर तुझसे तेरी खताएं ना मांगी।
माना कि ज़रा ज़मीनी दूरियाँ तो थीं,
पर ये दिल तुझसे इतना दूर कब था?
साथ जीने की तमन्ना लिए मन में,
अकेले जिए जाने को मजबूर कब था?
एक अर्ज़ी मेरी भी है तेरी फ़ेहरिस्त में,
हो सके तो उसे ज़रा तरज़ीह दे देना।
सुना है दुनिया को खुशियाँ बाँटती हो,
सूने अंजुमन को भी एक मसीह दे देना।
....©नवीन सिंह

सोमवार, 1 अगस्त 2016

और क्या चाहिए...

अंजुमन गुलज़ार है एक खिलखिलाती हँसी से,
और  क्या चाहिए  दिल  को  बहलने के लिए।
जाते-जाते  छोड़  गयी  हो  संदली सी  ख़ुशबू,
और क्या चाहिए  फ़िज़ा को  महकने के लिए।
बीते लम्हों की  परछाई में भी  एक नशा सा है,
और  क्या चाहिए  दिल को  बहकने  के लिए।
ख़्वाबों में ही सही  हाथों में  तेरा हाथ  होता है,
और  क्या चाहिए  मुझको  सम्भलने  के लिए।
~नवीन