बुधवार, 3 अगस्त 2016


आज भी तू मेरी साँसों में बसती है,
और तुझ बिन मेरा वज़ूद भी कब था?
मोहब्बत तो अब यादों से ही ज़िन्दा है,
वरना मेरे इश्क का कोई सबूत कब था?
दिल का दर्द ही सुनना है तो सुन लो,
अक्सर इन आँखों में आती है ये नमी।
ज़िन्दगी का सफ़र भी कट ही जाएगा,
रह भी जायेगी तो हमसफ़र की कमी।
दुनिया तो आज भी ग़लतफहमी में है,
कि मैंने तुझे पाने की दुआएं न मांगी।
क्या मेरे ख़्वाब कभी तुझसे अलग थे,
या फ़िर तुझसे तेरी खताएं ना मांगी।
माना कि ज़रा ज़मीनी दूरियाँ तो थीं,
पर ये दिल तुझसे इतना दूर कब था?
साथ जीने की तमन्ना लिए मन में,
अकेले जिए जाने को मजबूर कब था?
एक अर्ज़ी मेरी भी है तेरी फ़ेहरिस्त में,
हो सके तो उसे ज़रा तरज़ीह दे देना।
सुना है दुनिया को खुशियाँ बाँटती हो,
सूने अंजुमन को भी एक मसीह दे देना।
....©नवीन सिंह

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